एक झूठे किस्से से थोड़ा समा बाँधते हैं शायद वो सच्चाई की दहलीज तक ले जाए। कल्पना कीजिये एक बच्चे की जो आपकी गोद में खेल रहा हैं, उसकी उम्र महज 1 साल हैं। वो अचानक से रोने लगता हैं। न जाने किस चीज की चाहत उसके मन में जग चुकी हैं पर वो बता पाने में सक्षम नहीं हैं या उसको समझ पाने में हम और आप सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। कुछ समय बाद बच्चा बड़ा होता हैं अब वो कुछ टूटे फूटे शब्द बोल लेता हैं जिसे उसके घर वाले समझने की कोशिश करते हैं। जब बच्चा और बड़ा होने लगता हैं वह अपनी बात को स्पष्ट रूप से बता पाने में सक्षम हो पाता हैं।
यह स्पष्टता का किस्सा जो एक बच्चा अपने अनुभव से सीखता हैं उसमें सबसे अहम किरदार समाज निभाता ही हैं। यह अनुभव धीरे-धीरे उसकी शिक्षा में जुड़ती चली जाती हैं।
इसके कक्षा के मायने को एक आपबीती उदाहरण से मैं बताने की कोशिश करता हूँ…..
कक्षा में पढ़ाते हुए मुझे तकरीबन 8 माह का समय हो चुका हैं। यह कहना बुरा नहीं होगा कि जब पढ़ाना शुरू किया तो काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा, चाहे वह पाठ्योजना बनाना हो या कक्षा व्यवस्था को बनाए रखना हो।
कक्षा में यदि मुझे कभी भी कुछ भी शुरू करवाना होता था तो सबसे पहली अगर मेरी चिंता का विषय कुछ होता था तो वह कक्षा व्यवस्था का होता था। जिसको शुरू और अंत किस प्रकार से करवाना हैं यह तो पता रहता मगर उस दौरान उठने वाली खलबली पर अपना नियंत्रण बनाए रखना थोड़ा कठिन होता था।
असफलता और मायूसी का आलम इस कदर होता कि कोई समाधान ही नहीं दिखता फिर समाधान इसका कुछ इस तरह निकालता जब भी कक्षा में परेशान हो जाता तो एक मोरल लेक्चर की शुरुआत कर देता और जो हतकण्ड़े मैंने अपने बचपन में अपने शिक्षकों से अनुभव करके सीखे थे वो सारे के सारे थोप देता।
थोड़ा समय अपनी गलती मानने में लगा और फिर थोड़ा समय यह भी समझने में लगा की उनको मैं वयस्कों की भांति समझा रहा हूँ जबकि वह हैं नन्हें कलाकार और अगर तुम्हारे निर्देशों में स्पष्टता नहीं होगी तो फिर नन्हे कलाकारों की कलाकारी उनकी रुचि के अनुसार निकल निकल कर आएगी। जिससे कक्षा का संतुलन बिगड़ना बिल्कुल लाजमी भी हैं।
अब इसको सुधारने के लिए समय काफी लगा, सबसे पहले कुछ समय के अंतराल धीरे-धीरे अपनी पाठ्योजना में परिवर्तन करा पूरी एक घंटे की कक्षा में किस समय बच्चों को क्या करवाना हैं और उस समय बच्चे क्या करते हुए मुझे दिखेंगे और मैं अपने निर्देशों को कैसे कह रहा होऊंगा उसको समय नियोजिय कर एक पूर्वानुमान चित्र मैं बना लेता था। जिससे कक्षा में क्या करवाना हैं उसके निर्देशों में स्पष्टता आ गयी।
शिक्षा के अर्थ एवं दार्शनिक पहलू को समझे तो आभास होगा जो हमारे जीवन शैली को सरल बनाने में आवश्यक हो वही शिक्षा हैं और उस शिक्षा के अर्जन में स्पष्टता होना अति-आवश्यक हैं।
बचपन में हर बार की तरह कहीं आपको स्पष्टता में कमी के कारण केवल झुन झुना न मिले इसलिए शिक्षा में तो स्पष्ट होना पड़ेगा।
एक शिक्षक को भी अपनी कक्षा संचालन के दौरान स्पष्ट रहना चाहिए न कि कोई हनुमान एप्रोच की तरह बच्चों को ज्ञान का पूरा पहाड़ देने के बजाए सीधी नब्ज को ही पकड़कर जितना ज़रूरी हैं उसी पर स्पष्ट रहे।
Bohot shandar