यहाँ आने से पहले मेरी दुनिया बहुत अलग थी मेरी कहानी उस चिड़िया की तरह थी जो जब तक अंडे के अंदर थी तब तक अंडे को ही अपनी दुनिया मानती थी । मेरी दुनियां भी कुछ ऐसी ही थी
बस पढ़ाई पढ़ाई तो बस मैंने सोचा लिया था कि पढ़ाई खत्म होने के बाद यही चंबा में ही जॉब कर लुंगी ओर बस कट जाएगी जिंदगी । करना तो बहुत कुछ चाहती थी पर कोई उम्मीद की किरन नही थी तो जैसे जिंदगी कट रही थी बस उसे जी रही थी । उम्मीद की किरण नहीं थी इसका मतलब ये नहीं कि किसी का सपोर्ट नहीं था बस बात इतनी सी थी कि हम गांव के लोग हैं और हम लड़कियों को ज्यादा कुछ करने कि इजाज़त नहीं थी बस थोड़ा सा पढ़ लिया और फिर शादी । पर मेरे परिवार ने मुझे कभी नहीं रोका कि बस तुझे अब पढ़ना नहीं है और अब घर से बाहर नहीं जाना है  उन्होंने मुझे कभी नहीं रोका यही वजह है कि आज मैं अपने घर से बाहर हूं और मुझे आविष्कार में आने का मौक़ा मिला।

मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी कमी इस चीज़ की थी कि मेरा कोई मार्गदर्शन करने वाला नही था । पर जब भी किसी चीज़ को करने के लिए किसी ने हौंसला बढ़ाया तो मैंने वो काम हमेशा कर के दिखाया । हौंसला बढ़ाने का श्रेय सबसे पहले तो मैं अपने पापा को दूंगी। क्योंकि पापा ने कभी किसी बात के लिए कोई रोक टोक नही रखी बस उनकी तरफ से इतना रहा कि कोई भी काम करो गलत मत करो और किसी के अहित में न हो ।  मेरा परिवार मुझ पर बहुत विश्वास करता है और मै उस विश्वास को हमेशा क़ायम रखना चाहती हूं ।

मुझे अपने आप में सबसे अच्छी बात ये लगती है कि मुझ में सीखने की चाहत है मैं हर अच्छा काम सीखना और करना चाहती हूँ । मैंने आज तक कि अपनी जिंदगी पढ़ते पढ़ते गुज़ार दी और सीखा क्या बस एग्ज़ाम में मार्क्स ज़्यादा लेना और अपनी परसेंटेज बढ़ाना और ये बात मुझे यहाँ आविष्कार आकर पता चली की आज तक मेरी जिंदगी में क्या चल रहा था । बस जैसा स्कूल में बताया गया वैसा ही करते गए । अगर स्कूल में बोला गया कि आपको अच्छे मार्क्स लेने हैं एग्ज़ाम में, तो बस किताब पकड़ सब रट के बढ़ा ली परसेंटेज। सारे  अध्यापक और घर वाले भी खुश और मैं भी खुश पर कभी इतना नही सोचा कि जिस चीज़ के बारे में मैं पढ़ रही हूँ उसका मुझे ज्ञान  है भी या नही लेकिन आविष्कार आकर के मैंने ये बात सीखी है कि हम किसी चीज़ को कितना भी बड़ा चडा कर लें अगर हमें उस का ज्ञान नहीं है तो हमे उस के बारे मे कुछ नहीं जानते हैं ।

अभी आविष्कार में आए मुझे कुछ ही दिन हुए हैं पर इतने दिनों में ही आविष्कार ने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया है पहली बात तो ये कि ” वक़्त ” । वक़्त बहुत कीमती है इसे व्यर्थ मत गवाओं ।

“वक़्त हमारा है हम चाहे तो इसे ‘सोना’ बना सकते हैं
और हम चाहे तो इसे सोने में गुज़ार सकते हैं ”

आज तक मैंने आविष्कार के बारे में जितना सुना है वो मैंने अपने शब्दों में बताने की कोशिश की है :-

आविष्कार , सुन के ही कितना अच्छा लगता है ना ” आविष्कार ” तो आविष्कार एक ऐसी दुनिया है जहाँ आकर लगता है कि बस यही की हो जाऊं । यहाँ की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ है यहाँ की प्रकृति। इसके आसपास जो हरे भरे पेड़ पौधे और बर्फ से ढका पहाड़ है वो इसकी सुंदरता पर चार चाँद लगा देते है। ये पहाड़ मानो हम से बाते करता हो हमसे कुछ ना कुछ कहने की कोशिश करता हो और जब जब बारिश होती इस पहाड़ पर बर्फ पड़ती रहती है बारिश के बाद का वो नज़ारा देखने लायक़ होता है । मैंने आविष्कार के बारे में बहुत सुना है और अब देख भी चुकी हूँ और बहुत कुछ और नया देखने को भी मिल रहा है ।

“आविष्कार ” किसी का सपना था अविष्कार । बिहार में रहने वाली एक लड़की ये उस समय की बात है जब बिहार में लड़कियों का घर से निकलना मना था । वो अपने घर की चार दिवारियों में बंद पड़ी रहती थी पढ़ना लिखना तो दूर की बात थी उनका घर से बहार निकलना एक पाप माना जाता था । पर इन सब के चलते भी बिहार की एक लड़की ऐसी जिसने इस स्थिति में भी हार नही मानी उसकी माँ ने हर क़दम पर उसका होंसला बढ़ाया और वो आगे बढ़ी । फिर उसकी शादी हुई । शादी के बाद दोनों पति पत्नी एक दिन हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले में घूमने आये उन्हे यहाँ पालमपुर के छोटे से गाँव कंडवाडी की जगह बहुत अच्छी लगी । वो लड़की रोज़ उस गाँव मे जाती और उसकी सुंदर जगह को निहारती रहती । ऐसे ही देखते देखते उसने वहां पर कुछ करने की सोचा । कुछ समय बाद दोनों पति पत्नी ने वहाँ एक संस्था खोलने की सोची एक ऐसी संस्था जहां स्कूल में बच्चों को एक बेसिक तरीक़े से मैथ और साइंस पढ़ाना, इससे ब्च्चा समझे कि आख़िर  मैथ और साइंस का मतलब है क्या । धीरे धीरे उन्होंने अलग अलग स्कूलों में जाना शुरू किया ।लोग देखते थे कि किस तरह ये लोग मेहनत करके हमारे बच्चे के लिए कितना अच्छा कर रहे हैं । ऐसे ही चलते चलते इन लोगो ने आविष्कार बनाया एक ऐसी जगह जहाँ पहले एक गौशाला थी और आज वो जगह इतनी अच्छी लगती है मन करता है बस यही बैठे रहे । ऐसे ही इन लोगों के काम को देख कर लोग इनके साथ जुड़ने लगे । आज आविष्कार के अन्तर्गत 45 स्कूल आते हैं और अलग अलग  जगह से यहां लोग आते हैं कुछ ना कुछ सीख और सीखा जाते हैं । आविष्कार अब भारत के अलग अलग राज्यों में जा कर भी काम करता है । यहीं पर अब टीचर को भी ट्रेनिंग  दी जाती है और देश के अलग अलग राज्यों से यहां बच्चे कैंपस के लिए आते हैं
मैं आविष्कार में अभी नई ही फ़ेलोशिप मे आई हूँ अभी मुझे यहाँ आए एक ही महीना हुआ है पर ऐसा लगता है कि यहाँ सब अपना ही है कुछ भी पराया नही है । यहाँ पर रहने वाले सभी लोग बहुत अच्छे हैं सब एक दूसरे की मदद करते हैं । वास्तव मे  फ़ेलोशिप का मतलब ही यही है कि मिल जुल कर काम करना और मिल जुल कर रहना ।

मैंने अपने इंडक्शन ट्रेनिंग पर एक कहानी लिखी है वो कहानी मैं सब के साथ बांटना चाहती हूँ तो कहानी कुछ इस प्रकार है :-

जब पहली बार सुना आविष्कार का नाम ।
तब मन ने सोचा की ये संस्था करती होगी कुछ सर्चिंग का काम ।।
पर जब आविष्कार में कदम पड़ा ।
तब पता चला ये तो मैथ और साइंस के डिब्बे से भरा पड़ा ।।
साइंस के मॉलिक्यूल ने दिमाग खाया ।
यहाँ आकर पता चला कि पूरी दुनियां को छोटू ने बनाया ।।
फिर आये बच्चों के कैंप दिन ।
पहले पहले तो नही लगा मेरा मन ।।
फिर धीरे धीरे नई चीजें सीखने को मिली ।
अब मन बनाया अभी तुझे बहुत कुछ सीखना है बबली ।।
कैंप के दौरान हुआ कुछ ऐसा ।
कभी मन ने सोचा नही था ऐसा ।।
सुन कर हुई बड़ी हैरानी ।
क्या किसी का सपना हो सकता है कि पेड़ से तोड़ कर कहानी है ख्वानी ।।
पर जब दिमाग़ पर ज़ोर डाला ।
तब पता चला जाने अनजाने में ही सही एक पेड़ ने किसी का सपना पूरा कर डाला ।।
अब आया फेल्लोस के इंडक्शन का पहला दिन ।
श्रीराम और दानिश के टास्क ने कर दिया धिन धना धिन
सुबह सुबह आविष्कार से कहीं दूर ले जाया गया ।
हमारी आंखे बन्द कर दी गई हमसे सब कुछ लिया छीन ।
मुझे समझ नही आ रहा था  कि इंडक्शन चल रहा है या हो रही है हम फेल्लोस की किडनेपिंग ।।
सुनसान सड़क पर अकेला छोड़ के आये ।
हम तीनों पर ज़रा भी रहम नहीं खाये ।।
दिमाग के सब बन्द पड़ गए दरबार ।
एक घण्टे में हमे पहुँचना था आविष्कार ।।
कभी किसी से लिफ्ट माँगी तो कभी मांगा पानी ।
जैसे तैसे आविष्कार पहुँचे पर हार नही मानी ।।
इस टास्क से मैंने सीखी एक बात ।
कभी अकेले पड़ जाऊं तो कैसे सँभालने हैं हालात ।।
फिर आया इंडक्शन का दूसरा दिन कि आज तो मिलेगा आराम का काम ।
पर फिर से एक ओर बार श्रीराम के task ने कर दिया काम तमाम ।।
बहुत गुस्सा आया जब सुबह सुबह खाली पेट पहाड़ की चढ़ाई लगाई ।
लेकिन बहुत अच्छा लगा ये सुन कर कि हमारे साथ साथ  श्रीराम को भी अपनी नानी याद आई ।।
पर इस टास्क ने भी हमें सिखाई एक बात ।
जीत हो या हार कभी छोड़नी नही है अपनी रफ्तार ।।

मैं गांव की रहने वाली शर्मीली सी अपने पापा की लाड़ली ।
पर यहाँ आकर पता चला आविष्कार को शर्मीले लोगों की ज़रूरत नही है बबली।।
ये वो दौर है जहाँ शर्म और मासूमियत को बेवाकूफी कहा जाता है
मुझे अपने आप को बदलना है ये सवाल हर पल मेरे दिल में आता है ।।
दिल ने चाहा एक गोल बनाना ।
सेल्फ कॉन्फिडेंस को है अपने अंदर लाना ।।
यहाँ बहुत कुछ है सीखना और सीखाना ।
चाहे कोई भी टास्क आये उसे पूरा करके है दिखाना ।।