मेरे शुरुआती दिनों में क्लास कुछ इस तरह जाती थी। कक्षा का वातावरण कुछ इस तरह था। मै अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके कक्षा में प्रवेश करता। पर बच्चे शुरुआती कुछ मिनट तो सुनते क्योंकि एक नए भैय्या आये हैं, और उसके बाद के मिनट आप ख़ुद ही पड़ें।
छठी कक्षा के बच्चे है। बच्चे ज़मीन पर दरी बिछा कर बैठे हैं।
मैं ठोस द्रव गैस के अणुओं के बारे में बताना शुरू करता।
” हर एक वस्तु उसी जैसी बहुत छोटी वस्तुओं से मिलकर बनी होती है, और वह छोटी वस्तुएँ कभी पास होती हैं, कभी दूर होती हैं। इन छोटी वस्तुओं को हम अणु कहते हैं।” तभी अचानक..
” मेरी कॉपी लाओओ$$$$, भैया ये मुझे बैठने नहीं दे रहा, धक्का दे रहा है।” ,”$$मैं धक्का नहीं दे रहा।”
“आप लोग ध्यान दो, लड़ाई झगड़ा मत करो।”
वापस अपनी बात शुरू करता, “जब छोटे अणु बहुत पास पास होते हैं तो उन्हें ठोस कहते हैं, और जब बहुत दूर दूर होते हैं……।
“धिक-चिक, धिक-चिक, धिक्-चिक” बैग क़ो बजाने की आवाजें आतीं, मौक़ा देखते दो तीन बच्चे क्लास में उठकर इधर उधर घूमने लगते, बच्चे मेरे सामने एक दूसरे को मार रहे, मौक़ा देखते ही कुछ बच्चे धीरे से क्लास से बाहर चले गए।
“तुम कहां घूम रहे हो चलो अपनी जगह बैठो, यह आख़िरी हिदायत है।” और वह आख़िरी हिदायत हर बार बच्चों के लिए जैसे पहली होती। हिदायत का असर कुछ देर ही रहता और बच्चे फिर अपने रंग में आ जाते।
मेरी कक्षाओं का वातावरण कुछ ऐसा होता। इस माहौल को बदलने के लिए 4 बातें हो सकती थीं। या तो बच्चे बदल दिए जाए, या उन्हें डरा दिया जाए या मै स्कूल बदलने की गुज़ारिश करूँ या फिर मैं खुद मे सुधार कर लूँ।
मुझ में बहुत सुधार की आवश्यकता थी, और गुंजाइश भी। न केवल शैक्षणिक बल्कि अन्य पहलुओं में भी। आखिरी विकल्प विकासोन्मुख था, सही लगा।
सफर सुधार का आविष्कार में कुछ इस तरह शुरू हुआ।
आविष्कार में आने के कुछ दिनों बाद ही 2 कैंप हुए। पाई साइकिल (6th to 8th),पाई सफारी (9th and 10th)। 5- 5 दिनों के यह दो कैंप थे जिसमे देश के अलग-अलग हिस्सों से बच्चे आए। कोई मुंबई, नागपुर, केरल, तमिलनाडु तो कुछ दिल्ली, सिक्किम जैसी अन्य जगहों से आए। देश की विविधता की झलक इन कैंपों में देखी जा सकती है।
इन कैंपों में मैथ, साइंस के कॉन्सेप्ट्स के साथ-साथ डिज़ाइन चैलेंज, साइंटिस्ट और मैथमेटिशियंस, ट्रेज़र हंट, ऐस्टीमेशन, काउंटिंग, पेपर कट एंड इवैल्यूएशन, पेंटेड क्यूब फेसेस जैसी और भी कई एक्टिविटीज़ हुई।
मैथ, साइंस के सेशन के दौरान मैंने जाना किस तरीक़े से बच्चों को पढ़ाया जाए ताक़ि उत्सुकता, समझ और सोचने की क्षमता पैदा हो। सरित सर ने किस तरीक़े से दो आसान शब्दों से स्टेट्स ऑफ मैटर, हीट जैसे टॉपिक्स बच्चों को समझाया।
प्रश्न जो कभी मस्तिष्क में नहीं आये। जैसे दो संख्याओं को जोड़ा जाता है तो हासिल क्यों लिया जाता है और यह क्या होता है? भिन्न, पूर्णांक, गुना, जोड़, घटा ऐसी न जाने कितनी चीजें अपने सामने होती देखी, जिन्हें सिर्फ कॉपी में सवाल की तरह किया था।
इन कैंप के दौरान ही प्रतिष्ठित संस्थानों से वॉलिंटियर, शख्शियतें भी आईं।
कमला भसीन जो कि एक वूमेन राइट एक्टिविस्ट हैं ने हम सब को क़ाफी समय दिया। कई महत्वपूर्ण बातें बताई जैसेकि हम बस औरत और मर्द को बराबर देखना चाहते हैं। न पितृसत्ता न मात्र सत्ता। अंत में पूरा कैंप उनके नारों की आवाज़ में गूँज उठा, “हम चाहते ना कम ना ज़्यादा, बस आधा-आधा।”…..
इसी दौरान ही विक्रम ने हमें कई महत्वपूर्ण चीजें दिखाई। मधुमक्खी, बरैया जैसे जीवों के छत्ते। और वह छत्ते ऐसे ही क्यों बने होते हैं? वह किस तरीके से काम करतीं ये जानकर आश्चर्य हुआ। कुछ जानवरों की आंखें साइड में होती है तो कुछ कि सामने होती है, ऐसा क्यों होता है? किस तरह से इन्सेक्ट, मधुमक्खी के नहीं होने पर धरती पर जीवन नष्ट हो जाएगा।
सीखा कि बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए, किस तरीक़े से प्रश्नों के माध्यम से बच्चों को सिखाया जाये, सिर्फ बताया न जाये, उनके दिमाग में डाटा नही भरना है। आप अपना होम वर्क इतने अच्छे से करके जाओ कि कक्षा में बच्चे को सीखने में मज़ा आये। जो पाठ पढ़ाने जा रहे हो, पहले उस पर बच्चे का नज़रिया जानना जरूरी है, फिर उनके नज़रिये से होते हुए उस पाठ की ओर बड़े। हो सके तो एक प्रश्न ही कराएं पर उस एक प्रश्न से बच्चे बहुत कुछ सीख जाये।
यहाँ आकर मुझे पता चला कि किस तरह करोड़ो बच्चों को एक ही रास्ते से होकर जाने को मजबूर किया जाता है। कैसे लोग अपने बच्चे को शिक्षा को बस पूरा कराना कराना चाहते हैं।
उन्हें भेजा जाता है विषयों को रटने, नंबर लाने। उन्हें नहीं भेजा जाता उनके मस्तिष्क के विकास के लिए, जो समस्या का हल निकालने में सक्षम हों, नए सिरे से सोचने में सक्षम हो।
ऐसी व्यवस्था बन चुकी है जिसमें बच्चों में भरी जाती हैं तरह-तरह की जानकारियाँ, सिर्फ जानकारियाँ। जो बच्चा सबसे ज्यादा जानकारियाँ बोलता है, उसे ही दिया जाता है ऊंचा पद, ओहदा, पैसा।
सीख रहा हूँ बच्चों, लोगों के साथ घुलना-मिलना, झगड़ना।
लोग आविष्कार को देखने, समझने आते ही रहते हैं। उन लोगों से भी बहुत कुछ सीखने को मिला।
क्यों तुम्हे बच्चे के साथ बच्चा हो जाना चाहिए। क्लास में बच्चे के साथ तुम भी इन्वॉल्व रहो, उनके साथ खेलते समय भी। आप दोनों के बीच अच्छी बॉन्डिंग होनी चाहिए। आप जितना उनके साथ सहज महसूस करेंगे, उतना ही वो भी सहज महसूस करेंगे। बच्चा हो या बूढ़ा हो, खुश होने पर ही अपना सर्वोत्तम दे सकता है, सीख सकता है।
टीचर की स्किल को सुधारने के लिए ऐसे कोर्सेस से भी सीखा। जैसे चेक फॉर अंडरस्टैंडिंग, बिहैवियर मैनेजमेंट साइकिल, रिफ्लेक्शन ये तरीक़े न केवल क्लास में अच्छे परिणाम देते बल्कि हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में भी महत्व रखते। बच्चों पर बिहैवियर मैनेजमेंट किस तरह काम करता, और कितना मायने रखता है ये बात कक्षा में जाकर ही पता चली।
पता चला कि हमारा एजुकेशन सिस्टम कैसे काम करता है, अब तक कौन कौन सी पॉलिसी, कमेटी बनाई गई, इन सब के बारे मे विस्तार से जानने का मौका मिला।
अभी सीख रहा हूं गांधी जी के शिक्षण पर किए गए प्रयोगों से, लोगों के अनुभवों से।
अभी सीख रहा हूँ…..