एक आर्दश कक्षा कैसी होनी चाहिए?

 

इस साधारण से प्रशन ने मुझको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया और मुझे क्या पता था कि यह प्रशन  मुझको भी अपने बचपन के विद्यार्थी जीवन के आसाधारण बातों से रुबरु करवा देगा। 

 

अभी तक हम अपनी शिक्षा की कढ़ाई में जितने भी तेल मसाले डालकर उसको बेहतर करने के जितने भी नुस्ख़े देते रहें है उसमें अलग-अलग प्रकार से कक्षाओं के विवरण देते रहे हैं। मगर उसमें यह बात सामने आती रहीं है कि कक्षा को और बेहतर कैसे किया जा सकता हैं जिससे छात्रों के अधिगम स्तर में और वृद्धि लाई जा सके। इसके लिए समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार की आदर्श कक्षा की रूपरेखा की संरचना होती रहती हैं जिसमें यह सवाल बार बार दोहराते हुए सामने आता रहता हैं कि “एक आदर्श कक्षा कैसी होनी चाहिए”

जब हम एक आदर्श कक्षा की बात करते हैं जिसमें एक शिक्षक अपने ज्ञान की लौ से बाक़ी के दीयों को प्रज्वलित कर रहा हैं।

मगर शायद हमको अपने इस आदर्श कक्षा के सवाल को और स्पष्ट करने की आवश्यकता हो जाती हैं कि आदर्श कक्षा किसके नज़रिये से छात्रों की या शिक्षकों की। 

यदि शिक्षकों की तरफ से देखें तो आदर्श कक्षा वो होगी जिसमें बच्चे शांति से बैठे रहें और शिक्षक के निर्देशों का पालन बिना किसी हल्ले गुल्ले के करते रहें और यदि छात्रों की दृष्टि से देखें तो इसके पूरे विपरीत जिसमें हल्ले गुल्ले के बिना किसी कार्य का आरंभ और अंत नहीं होगा।

इसको एक उदाहरण से समझते हैं,

एक बार जब मैं अपनी कक्षा की ओर जा रहा था तब किसी दूसरी कक्षा में भाषा पढ़ाती हुई एक शिक्षिका ने बच्चों को बोला अगर तुमने कक्षा में बोला या शोर मचाया तो मैं तुमको और पढ़ाऊंगी। 

मेरे मन में ख्याल आया की यदि भाषा पढ़ाना हैं तो बच्चों को बोलना तो पड़ेगा ही। और फिर हल्ला गुल्ला तो होगा ही।

उसी प्रकार यदि विज्ञान सीखाना हैं तो प्रयोग करवाना तो अनिवार्य हैं और प्रयोग के दौरान छात्रों की जिज्ञासा, प्रयोग के दौरान सभी प्रकार की होनी अनहोनी पर तमाम सवाल और विचार तो सामने आएंगे ही और जहाँ विचार आएंगे वहां मतभेद भी हो सकता हैं। मतभेद जहाँ हैं वहाँ हल्ला-गुल्ला तो स्वाभाविक ही हैं।

एक शिक्षक को अपनी कक्षा के संचालन के दौरान हल्ले-गुल्ले पर पूरा नियंत्रण रखने की आवश्यकता तो है ही क्योंकि यह छात्र की भागीदारी तो सुनिश्चित करता ही हैं उसके साथ छात्रों में उमंग की धारा छोड़ता हैं जिसकी असीम ताक़त कभी भी नियंत्रण से बाहर होने पर कक्षा में अव्यवस्था भी फैला सकती हैं।

इसलिए एक शिक्षक को बारीक़ी से मगर नियमित रूप से अपने कक्षा के हल्ले गुल्ले को नियंत्रण में रखने का प्रयास करते रहना चाहिए।

ऐसा कभी नहीं हो सकता कि किसी हल्ले-गुल्ले के बिना कक्षा का संचालन हो सके। यह तो एक चरण हैं अधिगम का जिसके बिना छात्र की उत्सुकता और उनकी समझ को भांप पाना मुश्किल हैं।

यक़ीन नहीं होगा मगर करना पड़ेगा अपनी फेलोशिप के इस  महीने का अनुभव अपने ब्लॉग के द्वारा करने वाला भी कभी बच्चा था। जो कभी स्कूल भी जाता था और जहाँ तक लगता हैं कि आज के सब बड़े लोग भी कभी बच्चे रहे होंगे। मगर जब बड़े हुए तो फिर हल्ला गुल्ला छोड़ सिर्फ बड़ों की तरह सोचने लगे। 

शुभम कुशवाहा