एक शिक्षक को पढ़ते हुए देखना जितना आसान लगता है , उतना  ही  खुद एक शिक्षक  बनकर पढ़ाना  मुश्किल  होता हैं ।

Nicky

ऑनलाइन सत्र के दौरान एक गणित शिक्षक के रूप में मेरे पहले दो सप्ताह का अनुभव बहुत ही यादगार रहा। इन सत्रों में मैंने बहुत कुछ सीखा और समझा भी। मैंने छात्रों से दोस्ती की। परिचय किया और गणित को एक्टिविटीज तथा गेम्स के द्वारा सिखाया तथा खुद भी सीखा। सत्र के बाद मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ क्योंकि शिक्षक के रुप में मेरे पहले सत्र अच्छे गए। बच्चों के साथ मिल कर मेरे पढ़ाने के तरीके मे बदलाव आया जो मुझे खुद में दिखाई दे रहा है। ये सत्र लेने के लिए मैंने कुछ इस तरह तैयारी की-

पिछले तीन महीने एक छात्र के रुप में –

इन तीन महीनों में मैने अविष्कार में एक छात्रा के रुप में बहुत कुछ सीखा और समझा है। यहां पर जिस तरह से गणित गतिविधियो द्वारा आस पास की दुनियां से जोड़ा जाता हैं इस तरह से मैने गणित कभी नहीं सीखा। यहां आकर गणित के प्रति मेरा नजरिया ही बदल गया। अब मैं गणित को सोचती तथा आस पास की दुनियां में गहराई से देख पाती हूं। अभी तक मैंने संख्याओं की समझ, संख्या का स्थान और मान, जोड़ घटाव, गुणा, भाग, आकृतियों की समझ, ज्यामिति, डाटा संधारण तथा नाप तोल आदि पड़ चुकी हूं। पहले मैं गणित को सिर्फ खुद के लिए पढ़ती और समझती थी, लेकिन अब मैं बच्चों को कैसे पढ़ाया जाता है उसके बारे में सीख रही हूं।

किसी चीज को सीखने में जीतनी मुश्किलें आती  है, उससे दुगुना किसी को  सिखाने  में मुश्किलें होती है। पिछले तीन  महीने से किस तरह से पढ़ना है ये सिख रही थी , पर अब बारी आयी पढ़ाने की।

Nidhi


तैयारी-

अवधारणा को वितरित करने के लिए मैंने और मेरी सभी साथियों ने सबसे पहले योजना बनाई कि कैसे बच्चों को पढ़ाना है? हमने हर अवधारणा का लेसन प्लान बनाया। उसे अपने साथी, जिनके साथ मैं टीम में काम कर रही थी तथा फैसिलिटेटर के साथ साझा किया और फीडबैक लिया कि किस तरह से उसे और सुधार सकती हूं। इससे मुझे बहुत मदद मिली।

अपनी अवधारणा को ऑनलाइन कक्षा में बच्चों के समक्ष कैसे लेके जाएं इसके लिए लेसन प्लान के हिसाब से मैंने टीम के साथ स्लाइड बनाई। स्लाइड इस प्रकार से बनाई जिससे मैं क्लास इंट्रस्टिंग बना पाऊं तथा बच्चों को पढ़ने में मजा आए। वह बोर ना हों इसके लिए बहुत सारी एक्टिविटी तथा गेम्स स्लाइड में डाली। मैंने परिचय और बेसलाइन प्रश्न की स्लाइड्स बनाई और अपनी प्रेजेंटेशन तैयार की।

प्रेजेंटेशन बनाने के बाद मैंने  देखा कि हम हर एक स्लाइड्स में बच्चों के सामने क्या बोलेंगे, उसके अनुदेश लिखे। उसके बाद मैने सबसे पहले खुद से अनुदेश बोलने की तैयारी की। उसके बाद अपने टीम और फैसिलिटेटर के साथ मॉक किया ।

डिजिटल उपकरणों का उपयोग –

ऑनलाइन कक्षाएं लेने के लिए मैंने डिजिटल उपकरण जैसे जूम ऐप, स्लाइड, लैपटॉप, एनोटेशन पैड आदि का इस्तेमाल किया। इन्हे इस्तेमाल करने से मुझे काफी सहायता मिली लेकिन उसके साथ साथ कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा जैसे लैपटॉप में खराबी तथा नेटवर्क सही से ना चलने के कारण स्लाइड बनाने मे कठिनाई तथा क्लास में बार-बार ड्रॉप होना। उसके अलावा उपकरणो को इस्तेमाल करने में परेशानी हुई।

इंटरव्यू

इंटर्नशिप के लिए जब मुझे पता चला कि इंटरव्यू देना है तो मुझे घबराहट हो रही थी क्योंकि मैंने कभी इंटरव्यू नहीं दिया था। लेकिन साथ-साथ खुशी भी हो रही थी कि मैं जॉब की दुनिया में कदम रख रही हूं। बहुत सारी भावनाएं मन में आ रही थीं।

एनजीओ में इंटरव्यू देने से पहले मैंने अपने फैसिलिटेटर के सामने मॉक इंटरव्यू दिए। उनके फीडबैक से मुझे बहुत मदत मिली कि किस प्रकार से मैं इंटरव्यू दे सकती हूं और मुझे बोलने में क्या सुधारने की जरूरत है। 

टीम और साथियों का समर्थन –

इन दो सप्ताहों में मुझे मेरे टीम और साथियों का बहुत समर्थन मिला है। अवधारणा को समझाने में मदद, ppt बनाने में सहायता करना, फीडबैक देना आदि में मुझे मेरे टीम और साथियों का बहुत समर्थन मिला। हमने टीम में काम किया और कक्षाएं लेने से पहले एक दूसरे के साथ मॉक भी किए। हम सब अपने आपको लगातार सुधारने मे लगे रहे।

सप्ताहों में पहले सत्र से अंतिम सत्र तक की यात्रा –

इन दो सप्ताहों में पहले सत्र से लेकर अंतिम सत्र की यात्रा बहुत ही मजेदार, अनुभव करने वाली तथा बहुत सी चुनौतियों वाली रही है। पहले दिन ऑनलाइन कक्षा लेने में घबराहट हो रही थी। किस तरह से बच्चों से दोस्ती करूं? किस तरह से अपनी कक्षा को इंट्रेस्टिंग बनाऊं? पहला सेशन मैंने परिचय के ऊपर ही बनाया, जिसमें छात्रों के साथ बातचीत करी, उनके बारे मे जाना । जिसमें सभी छात्र इंगेज हो गए थे। यह सब बातें लगातार दिमाग में चल रही थी परंतु अंतिम सत्र में पहुंचने तक डर भी खतम हो गया और कक्षा में बच्चो से दोस्ती और कक्षा इंट्रेस्टिंग दोनो होने लगी। कभी कभी इंटरनेट की दिक्कत हो रही थी, जिससे छात्रों का समय खराब होता था, मेरा पूरा सेशन खराब हो जाता था। लेकिन सेशन लेने का मतलब ये नहीं कि मैं ही उनको गणित सीखा रही थी वो भी मुझे कुछ न कुछ सीखा रहे थे। जो भी मैं क्लास के दौरान पढ़ाती हूं उसको अलग अलग अवधारणाओं से विजुलाइज करवाने की कोशिश करती हूं। ताकि बच्चों को अधिक रूप से समझ आए। और बहुत चीजों को अपने आसपास देख सकें। सबसे बड़ी बात सेशन के दौरान धैर्य रखना और हमेशा चहरा मुस्कुराता हुआ रहता था, ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।

बच्चों से मैं और मेरे साथी सत्र क बाद भी जुड़े रहते हैं- कभी whatsapp ग्रुप के माध्यम से नहीं तो फोन कॉल पर। बच्चे हुमे फोन करके अपने सवाल पूछते हैं या ग्रुप पर भी संदेश भेज देते हैं। बहुत जल्दी उनका हुमसे और हमारा उनसे लगाव बढ़ गया है।

चुनौतियां

चुनोतियाँ  तो बहुत थी जैसे, नेटवर्क की परेशानियाँ , कुछ बच्चे लेट जॉइन होते थे. ,  साइड के अनुसार अनुदेश देना, annotate करने में दिक्कत, बच्चों का जवाब ना देना, डाटा जल्दी ख़तम होने से ज्यादा बच्चो का ज्वाइन नहीं करना , एक साथ सभी बच्चो पर ध्यान देना। , सभी के पास कॉल करके उनसे होमवर्क के लिए बाते करना, लेशन प्लान करना, प्रेजेंटेशन बनाना। धीरे धीरे इनमे से कई चुनौतियाँ खत्म होती दिख रही हैं।

शिक्षण का अनुभव और आपसी चिंतन

सत्र के बाद मैं, मेरे साथी और मेरी टीम के लोग हम सब बैठकर आपस में बात करते कि सत्र कैसा रहा? उसके बारे में बातचीत करते है। और हम यह भी बातचीत करते हैं कि आज हमने क्या नया सीखा क्या इंप्रूव करना चाहते हो, कौन सी बात है जो आगे से ध्यान रखना चाहते हो। इन विषयों के बारे में चर्चा होती है और इन सभी बातों को हम नोटबुक में लिखते हैं। और आपकी क्लास का अनुभव कैसा रहा उसके बारे में बताते हैं

गणित शिक्षक के रूप में मेरे पहले 2 सप्ताह का अनुभव बहुत अच्छा रहा। मैंने पहले कभी बच्चों को पढ़ाया नहीं था। लेकिन जब मैं पहली बार अब पढ़ा रही हूं, तो बहुत मजा आ रहा है और कुछ नया सीखने को भी मिल रहा है।

बचपन में मेरे दिमाग में एक सवाल था की टीचर हमारे इमोशन को देख कर कैसे समझ जाते हैं कि मुझे कितना समझ में आ रहा है और कितना समझ नहीं आ रहा है। मेरे सारे सावलो का जबाब अब मिलाने लगा है।

-Written by Aarohan Fellows

About Aarohan Program

It is a math educators training for women in villages, run by three organisations Sajhe Sapne, Aavishkaar and Ashvattha Learning Communities. It is a one year long program where young women go through training to become educators. Women enrolled in the program are referred to as Aarohan Fellows. 7 fellows of the current cohort- Anjali, Arti, Diksha, Nicky, Nidhi, Gangi and Rajandeep have together written this blog.