“कैम्प” का नाम सुनकर ऐसा लगता है कि सिर्फ़ मौज़ मस्ती और बस यही, बाक़ी और कुछ भी नहीं लेकिन कभी ये नही सुना था कि मौज़ मस्ती के साथ पढ़ाई। हम पढ़ाई का नाम सुनते ही ऐसे डर जाते हैं जैसे पता नहीं क्या बोझ पड़ गया हमारे सिर पर। लेकिन यहाँ पढ़ाई का मतलब सिर्फ पढ़ाई नहीं है या किसी चीज़ को रटना मात्र नही है इसका मतलब है “सीखना”। कुछ इस तरीक़े से या इस तरह से सीखना और इतनी सरल भाषा में सीखना कि जो सब को समझ आए और हम किसी को भी सरल तरीक़े से समझा पाएँ। उसको अपने हाथों से प्रयोग कर के बता पाएं।
आविष्कार में जिस तरीक़े से और जितने सरल शब्दों का इस्तेमाल करके हमें सिखाया या बताया जाता है वैसे ही मैं भी कोशिश करती हूँ कि जब भी स्कूल में जाऊँ, जो भी बच्चों को सिखाऊँ वह इतने सरल शब्दों में हो कि हर बच्चे को समझ आए । क्योंकि :-
शब्दों में जितनी ताक़त होगी ,उतनी सरलता उनको समझने में होगी, वरना आवाज़ तो हर कोई ऊँची कर सकता है।
वैसे भी जितने धीमे से बारिश होती है, उतने ख़ूबसूरत फूल खिलते हैं।
तूफान तो सब कुछ बहा कर ले जाता है ।।
कैम्प में आए हुए बच्चे यह सब देख कर कोशिश करते हैं कि जितनी सरल भाषा में उन्हें बताया जा रहा है वह भी सरल से सरल शब्दों में जवाब दें।
यहाँ आकर हर एक बच्चा सोचता है कि वह अपने दोस्त के साथ रहे कोई भी किसी दूसरे के साथ नहीं रहना चाहता। लेकिन इन सब के साथ हम बच्चों को सिर्फ अपने दोस्तों के साथ ही नहीं रहने दे सकते क्योंकि सब अलग अलग जगह से आते हैं। तो हमारी यह भी सोच होती है कि यहाँ आए सभी बच्चे एक दूसरे के दोस्त बने सब एक दूसरे को समझे ताकि कभी भी ज़िंदगी में उन्हें अपने परिवार से या अपने दोस्तों से दूर अकेला रहना पड़े तो उस परिस्थिति में वह नए दोस्त बना सकें।
बच्चों के साथ रहते रहते मैंने भी बहुत कुछ सीख लिया । सुनने में बहुत बड़ा शब्द है ” ज़िम्मेदारी “
सुन के ही डर सा लगता है जैसे पता नही कितना बड़ा बोझ डाल दिया है किसी ने हमारे सिर पर। किसी के मुँह से सुन ले कि आपको कोई काम करना है और इसको पूरा करने की ज़िम्मेदारी आपकी है तो हम डर जाते हैं। अक्सर हमें अपनी ज़िंदगी में जिम्मेदारियों से बड़ी शिकायतें रहती हैं। मैं किसी भी छोटी छोटी ज़िम्मेदारियों से डर जाती थी लेकिन अगर सोचा जाए तो जब तक हमारी ज़िंदगी में कोई ज़िम्मेदारी ना हो तब तक हम सही रास्ते में जा ही नहीं सकते ठीक उसी तरह जिस तरह एक पतंग को उसकी डोर से अलग कर दिया जाए तो कभी वह अपनी सही दिशा में जा ही नहीं सकती।
अगर हमें किसी चीज़ की ज़िम्मेदारी दी जाती है तो पता नहीं क्यों दिल डर सा जाता है कि हम इसे पूरा कर भी पाएँगे की नहीं । लेकिन जब वह ज़िम्मेदारी हम दिल से निभाते हैं और उसे पूरा करते हैं तो उसे पूरा करने के बाद एक अलग ही सुकून मिलता है ।
अभी कुछ दिन पहले मैं काफ़ी बच्चों के साथ रही एक तरह से बोले तो उनको संभालने की कहीं न कहीं मेरी भी ज़िम्मेदारी थी मैं दिन रात उनके साथ रही। बच्चे थे तो शरारतें तो साथ में होंगी ही हमेशा और छोटे बड़े सभी बच्चे थे तो मन घबरा गया था कि पता नहीं मैं संभाल भी पाऊँगी या नहीं पर इन सब के बीच मे उनसे सीखने को भी बहुत कुछ मिला । देश के अलग अलग कोने से बच्चे आते हैं और उन सब के रहन – सहन के तरीक़े भी एक दूसरे से अलैदा होते हैं । बहुत छोटे- छोटे बच्चे आते हैं, कुछ तो ऐसे होते हैं जो पहली बार घर से इतनी दूर अपने माँ – बाप को छोड़ कर आए हैं पर फिर भी वह कुछ सीखना चाहते हैं कुछ करना चाहते हैं इसलिए घर से इतनी दूर अपने माँ – बाप से दूर यहाँ आते हैं चाहे कुछ दिन के लिए ही पर उनमें सीखने का ज़ज़्बा है तब भी वह बच्चे होने के बावजूद यहाँ इतनी दूर आने का क़दम उठाते हैं।
किसी के लिए यह बहुत छोटी बात हो सकती है बच्चों को संभालना लेकिन मेरे लिए यह पहली बार था तो मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात थी । धीरे-धीरे मैं बहुत कुछ सीखने लगी हूँ । मेरी ज़िंदगी में कभी ऐसे पल नहीं आए ना मैंने कुछ किया लेकिन अब मौक़ा मिला है तो मैं इसे ऐसे ही गँवाना नहीं चाहती कुछ तो अपनी ज़िंदगी में करना चाहती हूँ। यहाँ आकर इतना तो लक्ष्य बन गया है कि अगर :-
ज़िंदगी में आए हैं तो कुछ करके ही जाना है ।
बबली।