ये कहानी है उन बच्चों की जिनके साथ मैं पिछले आठ महीनों से जुड़ा हुआ हूँ। इन बच्चों में दिखते बदलाव मुझे मेरे प्रयत्नों के फल के रूप में दिख रहे हैं।

ऐसे तो कई बच्चे हैं जिनमें मैंने कुछ ना कुछ परिवर्तन देखे हैं। लेकिन उनमें से भी एक बच्ची ऐसी है जिसके बारे में आगे बताने जा रहा हूँ।

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मेरी इन 8 महीने की यात्रा में मैंने इस बच्ची में सबसे ज्यादा बदलाव देखें। जिसके यहां मैंने अपनी पहली कम्युनिटी विजिट (उसके परिवार से मिला) की थी। ये बच्ची है कनिका, कक्षा के दौरान अब वो क्रियाशील रहती है और बे झिझक होकर के उत्तर देती हैं। अब हर एक बात को ध्यान से सुनती है। न केवल उत्तर देती है बल्कि कहीं जा रही बात पर प्रश्न भी करती है। बात पर तुरंत विश्वास करने की बजाय, वह उस बात की तह तक जाने का प्रयत्न करने लगी है। उसकी उत्सुकता का अब पारा-वार नहीं हो रहा है। इतनी उत्सुक हो जाती है वो कि मेरी बात पूरी होने से पहले ही प्रश्न पूछने लगती, जैसे कि वह प्रश्न उसने नहीं पूछा तो वह कहीं गायब हो जाएंगे या फिर जैसे उनका उत्तर नहीं मिल पाएगा।

ऐसा ही एक वाकया तब का है जब मैं बिजली (इलेक्ट्रिसिटी) पड़ा रहा था। बिजली की कहानी बुनने के बाद मैंने बेंजामिन फ्रैंकलिन के बारे में बताया कि उन्होंने किस तरीके से बिजली से जुड़ी चीजों को जानने की भरपूर कोशिश की, वो काफी उत्सुक व्यक्ति थे। न केवल बिजली को जानने में बल्कि हर काम  को जानने और उसे करने में उत्सुक रहते थे। एक बार बेंजामिन ने तार में बहने वाली बिजली और आकाश से गिरने वाली बिजली का अध्ययन कर उन्हें एक जैसा बताया। जैसे कि उनका आवाज़ करना, रोशनी करना और उनकी महक का एक जैसा होना। अंतिम बात कि आकाशीय बिजली की महक कैसे पता चल सकती है। बच्चे मानने को तैयार ही नहीं थे। वो कहते कि हमें आसमान से गिरने वाली बिजली की महक कैसे पता चल सकती है?

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उन्हें समझाने के लिए बताया कि जब बिजली आसमान से गिरती है तो हवा में उपस्थित ऑक्सीजन और नाइट्रोजन टूट जाती है और ऑक्सीजन ओज़ोन में बदलती है। और यदि हवा तेज चल रही हो तो वह महक हमारे पास पहुँचती है। इस तरीके से आसमान से गिरी बिजली की महक का पता चलता है पर ऐसा होने के लिए बिजली का हमारे नज़दीक गिरना आवश्यक है या आंधी का चलना।

बच्चे मेरी इस बात को मान ही नहीं रहे थे कि बिजली की महक हमें कैसे पता चल सकती है? कक्षा में हो-हल्ला मच गया। सभी अपने बगल वाले से फुसफुसाने लगे, प्रश्न करने लगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? कनिका कहती कि भैया हम मान ही नहीं सकते। हमने तो कभी देखा ही नहीं है, हमने कभी ऐसा महसूस ही नहीं किया है। आप हमें झूठ बता रहे हो।

यह सब सुनकर मुझे अच्छा नही लगा कि बच्चे मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं है जब कि मैं तो उनके लिए इतनी तैयारी करके आता हूं। 

बच्चों को विश्वास दिलाने के लिए मैंने एक उदाहरण लिया। जब बारिश कभी-कभार जब पड़ोसी मोहल्ले या कस्बे में बारिश होती है तो उसकी महक हमको पता चल जाती है।  एक महक नमी की, मिट्टी की। इसको सूंघकर हम बता पाते हैं कि कहीं आसपास बारिश हो रही है। बताते हुए मैंने बच्चों से कहा कि कभी आपने ऐसा तो महसूस किया ही होगा। तो इस पर बच्चे बोले कि हमने कभी नहीं महसूस किया। ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न थे? दीपांशु कहता ऐसा नही होता है आप कुछ भी बता रहे हो।

बच्चों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया। मै और क्या कहता उस वक़्त सिवाए इसके कि आप बारिश की महक कभी न कभी खुद महसूस करोगे।

स्कूल से लौटते वक्त मैं सोच रहा था कि बच्चे मेरी बात पर विश्वास नही करते हैं, मैं उन्हें और कैसे बता सकता था? क्या वाकई में उन्होंने कभी दूसरे कस्बे की बारिश की महक नही महसूस की? या फिर विश्वास न करने की हठ मात्र थी। 

पर यही समस्या जब मैने अपने साथी फेलो को बताई तो वह भी विश्वास नहीं कर रहे थे कि बिजली की महक होती है। भले ही वो बारिश की महक से रूबरू थे। पर साथी मान गए कि बिजली की महक हो सकती है?

कक्षा में बच्चों की इस बात पर विश्वास न करने पर उन्होंने कहा कि यह तो अच्छी बात है कि अब तुम्हारे बच्चे बिना सबूत के विश्वास नहीं कर रहे हैं। अब वह प्रश्न पूछ रहे हैं उनमें बदलाव आ गया है और वह वाकई में पहले से कितना बदल चुके हैं?

विज्ञान गणित के साथ-साथ कविताएं और कहानियों पर भी जोर देना मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि ये भी उनके विकास में मददगार होते हैं। उन बच्चों के काम से खुश होकर उनपर लिखी मेरी पहली कविता को मैंने उन्हें सुनाया। दिल से निकली ये कविता कुछ इस प्रकार है।

जादूगर     

आप एक जादुई दुनिया में रहते हो!

पर मुझे अफ़सोस है कि जादूगर आप बन सकते हो, फिर भी इस बात से तुम अनजान हो।

 

एक वस्तु लोहे को बिना छुए उसे अपने पास खींच लेती है, बिना छुए। 

तुम पत्थर ऊपर फेंकते हो, और वो नीचे गिर जाता है।

नीचे ही तो गिरता है, ऊपर क्यों नहीं?

अगर नीचे ज़मीन है तो ऊपर आसमां भी तो है। 

 

तुम ऊपर से कूदते हो, फिर नीचे गिर जाते हो।

पर मज़बूत पंख लगा लो तो गिरने की बजाय उड़ते ही जाते हो।

पानी में लोहे को फेको तो वो डूब जाता है।

लोहे को जहाज़ बना दो, तैर जाता है।

 

तुम एक कदम बढ़ाते हो फिर दूसरा कदम, और ऐसा बार-बार करने पर तुम एक नयी जगह पहुंच जाते हो। नये नज़ारे देख पाते हो।

 

कितना लाज़वाब है सबकुछ।

तुम्हारे आस पास जादू ही तो हो रहा है।

 

कुछ धीमी आवाज़े हम नहीं सुन पाते हैं।

सुनामी, भूकंप आने के पहले ही जानवर छिप जाते हैं।

 

अगर आसमां साथ नही दे, तो तुम आसमान की ऊँचाइयों को छूने को न भागना।

– दिव्यांशु

27 नवंबर, 2019

 

अब एक पाठ खत्म हो जाने पर मैं उन्हें एक कविता लिखने को कहता हूं। जनवरी तक बच्चे कविताएं किताब से देख कर लिख लाते थे, पर एक रोज़ कनिका ने खुद से एक कविता बनाई जोकि इलेक्ट्रिसिटी (बिजली) पाठ से जुड़ी थी। कोई उसकी बात पर विश्वास ही नहीं कर रहा था। कुछ बच्चे कहते कि तुम खुद कैसे लिख सकती हो? तुमने फोन से लिखी है। मुझे विश्वास नहीं हुआ पर उसकी दृढ़ता और पंक्तियों ने बताया कि ये कविता उसी ने लिखी है। वह कविता कुछ इस प्रकार है।

 

 बिजली

 

जमीन बोले काहे तुम गिरियो,

आकर हमारा सर दर्द करियो।

बरसात में तुम यही करियो,

आकर हमें खुद से चिपकाए लियो।

बिजली बोले शांत रहियो,

हमारे बिन तुम अंधेरे लगियो। 

हमारी दोस्ती अमर रहे जैसे बिजली कड़क रही।

कनिका

6 फरवरी, 2020

 

सत्र के आखिरी पड़ाव पर मैंने उनके शब्द उनकी भाषा पर ज्यादा जोर दिया। और उस एक घंटे में सिर्फ कुछ मिनट पढ़ने पर दिए जिसमें वह कहानी कविताएं पढ़ते।

ऐसे ही आखिरी सप्ताह की एक रोज मैंने ‘बादल क्या है’ कविता पढ़ी और उनसे कहा कि आप में से हर एक बच्चा, एक लाइन का मतलब तो बताएगा ही। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे। उनमें से कुछ बच्चे पंक्तियों का वर्णन काफी स्पष्ट तरीके से कर रहे थे। संजना का आसमान का रेगिस्तान से और बादल की ऊँट से तुलना, गौरव का पहाड़ से तुलना करना काफी लाजवाब था।

अंत में मैंने सभी बच्चों के विचारों को समेटे हुए सभी लाइनों का मतलब संक्षिप्त रूप से बताया। बताया कि कवि कैसे एक चीज़ के कई सारे गुण देखकर उन्हें दूसरी वस्तु से तुलना करके कविता लिखता है।

कविता पढ़ाने, पढ़ने का मुख्य उद्देश्य था कि बच्चे ये समझ जाएं कि कवि किस तरीके से सोचता है? और कविता लिखना कोई कठिन काम नही है।

इसके बाद मैंने उन्हें 5 मिनट का समय दिया कि आप लोग दो-दो के समूह में बैठकर एक नई पंक्ति बनाने के लिए अपने साथी के साथ चर्चा करो। चर्चा के बाद बच्चों ने अपनी लाइनें साझा किया। बच्चे जिनके कम नंबर आने की वजह से उन्हें बार-बार पीछे होने का आभास कराया जाता है, ने भी काफी अच्छी पंक्तियाँ सुझाईं। सभी बच्चों ने एक-एक लाइन तो सुझाई ही और अंत की दो पंक्तियाँ मैने भी सुझाईं। कविता कुछ इस प्रकार है।

 

बादल क्या है?

 

क्या बादल एक झील या तालाब है, या पानी से भरा एक बर्तन है। जो पहाड़ से टकराकर पानी गिरा रहा है।

क्या बादल एक फूल है जो जब मन आता है पंखुड़िया गिराता है, उगाता है।

क्या बादल एक जंगल है जो खुद को समर्पित कर दूसरों को जीवन देता है।

क्या बादल एक तालाब है या समुंदर है, जो जब चाहा सूख जाता जब चाहे भर आता है। 

 

या ये एक मछली है जो नीले आसमान में तैर रही है। 

या फिर एक नल है जो कभी भरभरा कर पानी उड़ेलता है तो कभी सूखे नल सा टप-टप-टप करता है।

क्या बादल हंस-सा है जो नीले तालाब में मस्त-मगन होकर तैर रहा है?

क्या बादल ननहार कक्षा के बच्चे हैं (अक्षय, शगुन, विवेक, कनिका, आर्यन, संजना, दीपांशु, सुनाक्षी, गौरव, आंशिका, राहुल, ईशा, मुस्कान सा है),

जो नीले कैनवास (बोर्ड) पर तरह-तरह की आकृतियां उकेरता है, नई-नई कविताएं रचते है।

-GMS ननहार, कक्षा के बच्चे

11 फरवरी, 2020

इसे सुनकर मेरे दिल को जैसा सुकून मिला मैं वो शब्दों में बयान नही कर सकता। लगा कि मेरी मेहनत सफल हुई। ऐसे परिणाम जो गणित, विज्ञान, कविता पर मुझे मिल रहे है मेरे द्वारा बदलाव के लिए उठाए गए कदमों के लिए सर्वोत्तम उपहार है।

ये प्यारे 14 बच्चे मेरी कर्मभूमि के अहम हिस्सों में से एक है। हमेशा याद रहेंगे…….

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तुम मुझे टूटे किबाड़ों से पटे घरों मे ले चलो, 

जिनकी दीवारें खुरची हुईं या ढहा दी गई हैं। 

वो नाम के घर जो दूर से देखने पर भरभराकर गिरने का और उसमें दब जाने का भय दिखाते हों।

ऐसे दिल के घरों तक तुम मुझे ले चलो।

जो निराशा, हताशा के जाल में बुन दिए गये हैं।

मैं वहां जाना चाहता हूं उनके निशां अनुभव करना चाहता हूं।

तुम मुझे ले चलो उजाड़ पड़े घरों मे, जहां रौशनी की लौ अभी नही जलाई गई है।

जहां अंधेरा ही उजाले का रूप ले इतराता है, और लोग खुश है इस फैले अंधेरे में।

 

सुकून हम उसकी दीवारों में पिरो देंगे।

हम बदल देंगे उसका ढांचा, दिलों में रोशनी भर देंगे।

सब्र न करो, बस मुझे ले चलो………

दिव्यांशु

12 फरवरी, 2020

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