पिछला महीना शिक्षकों के प्रशिक्षण शिविर का हिस्सा बनते हुए बीता। दो शिविर, हमारी कक्षा और आधार गणित आयोजित हुईं। एक 28 सितंबर से 2 अक्टूबर, दूसरी 4 अक्टूबर से 8 अक्टूबर।
इन शिविरों में भी देश के अलग अलग भागों से व्यक्ति आये। तमिलनाडु, दिल्ली, मुम्बई, हरियाणा जैसे राज्यों से अपनी विविधता के साथ आये।
शिक्षा के क्षेत्र मे अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे जुझारू, अनुभवी व्यक्ति इन शिविरों का हिस्सा थे। कुछ मेरे जैसे नौसिखिये थे, कुछ पदच्युत हुए व्यक्ति, तो कई लोग सालों कॉर्पोरेट मे अपना समय बिताने के बाद शिक्षा मे अपना योगदान अच्छे से दे पाने के लिए आविष्कार मे नए हुनर सीखने को आये थे। इन शिविरों की शुरुआत ऐसे महानुभवों के साथ हुई।
ओजस मे बैठे 30 शख्श गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए भिन्न (गणित के अध्याय) को नए अंदाज़ में सीख रहे थे। बीच बीच में ठंडी हवा स्पर्श करते हुए गुज़र जाती, ठंड सूरज की गर्माहट को पल भर के लिए ग़ायब सा कर देती और आने वाली ठंड का एहसास करा रही थी।
ऐसे शख्सियतों के साथ गणित के किसी विचार पर चिंतन करने में मज़ा आता।
मेरा पहला दिन काफी घबराहट भरा था। जबकि सिर्फ बैठ कर सुन्ना और बहस का हिस्सा बनना ही था। अगले ही दिन इस पर काम किया और लोगों से घुलना मिलना शुरू किया।
इन कैंपों मे सार्थक बहस का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता। शख्श अपने विचार रखते, और असहमति भी जताते। पर हम बातचीत का हिस्सा कम ही होते, सुनते ज़्यादा।
इस पर सरित सर ने एक रोज़ हमलोगों का उत्साहवर्धन किया कि आप लोगों को दूसरों के लिए आदर्श होना चाहिए, आपको चर्चा का ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा होना चाहिए। कभी शिविर में चर्चा हो और उससे जुड़ा कोई भी विचार आ रहा हो तो अपनी बात रखो, ज़्यादा से ज़्यादा ग़लत ही तो हो जायेगा। कोई शख्श अपनी बात रख रहा है और आप उससे सहमत नहीं तो आप ऐसे कह सकते की मुझे ये चीज़ समझ नही आई, मेरे विचार से इसका मतलब ऐसा होता है। क्या आप इसे थोड़ा और समझायेंगे। यह कुछ अच्छे तरीक़ेकार होते है अपना दृष्टिकोण रखने के लिए।
कोई सेशन ले रहा है, बीच में आप कुछ पूछना चाहते तो उसका सम्मान करते हुए पूछो, “कि क्या मैं यहां पर एक प्रश्न पूछ सकता हूँ, पर दूसरे को ग़लत ठहराने के उद्देश्य से प्रश्न कभी नही पूछना है।”
दो दिन बाद ही ठंड ने अचानक ही अपना रुख़ बदल लिया। ठिठुरती हवा ने सभी को शाल, सदरी ओढ़ने को मजबूर कर दिया। ऐसी ठण्ड के बीच चर्चाएँ करने का अलग ही मज़ा आता। गणित चर्चा ऐसे होती कि ठण्ड का ख्याल ही नही आता।
गणित चर्चा के दौरान एक बात पकड़ में आई कि हमारे दिमाग़ में हर एक नंबर का चित्र होता है। ये चित्रण हमारे दिमाग में जितने अच्छे से होगा, उस नंबर को हम उतनी ही शीघ्र समझ पाएंगे। जैसे कि हम पासे के पांच डॉट जहां भी देखते हैं हमे देखते ही पता चल जाता है कि ये 5 है, हम उसे गिनते तक नहीं क्योंकि 5 का चित्र हमारे दिमाग में अच्छी तरह बन चुका है। मैंने कक्षा में देखा था कि नेहा गिनतियाँ तो गिन लेती है पर वो ये नहीं जानती कि किसे एक कहते और किसे दो कहते हैं। उसे छोटे मोतियों से माला बनाने को कहता तो एक मोती को उठाकर डेस्क पर रखती फिर कहती एक। इस तरह गिनती शुरू करती पर 5 तक पहुँचते पहुँचते वो कभी दो मोतियों को एक बोलती तो कभी तीन मोतियों को एक कहती। उसने गिनतियाँ तो याद कर ली थीं पर उसने उन्हें पहचानना नही सीखा था। उसे गिनती की पहचान कराना हमारा काम था।
चाय और खाने के दौरान शिविर में आये व्यक्तियों से बातचीत होती। कई बहुमूल्य बातें पता चलती जैसे कि बच्चे के ग़लत उत्तर पर उदास मत हो और सही उत्तर मर मुस्कुराओ मत, सामान्य रहो ताकि वो नए तरीक़े से सोचना बंद न करे।
अब मैं 23 साल का हो गया हूँ परंतु अब जाकर मैंने सीखा की गणित में भाग किस तरीक़े से किया जाता है। सही तरीक़े से भाग देना सीखा। अब-तक जैसे सीखा था वो गलत था, अब मेरा दायित्व है कि दूसरों को सही सिखाया जाए।
विज्ञान के भी कई सत्र हुए। उन्हीं में से एक विद्दयुत का था। ये अध्याय मुझे ठीक से नही आया। इसे फिर से समझना है। कैंप के दौरान चर्चा इतनी गहन हो जाती कि चाय का समय भी इसी मे समाप्त होने को होता। समय सीमा समाप्त होने के बाद भी कोई बिग-बैंग पर चर्चा करता दिख जाता तो कोई अणुओं पर।
कैंप मे बदलते सत्रों के जैसे मौसम भी बदलता रहता, एक रोज़ चारों ओर से बादलों ने घेर लिया, बादल सर्दियों के कोहरे की नमी महसूस कराते हुए हमारे चेहरों से टकराते हुए आगे की ओर बढ़ते जा रहे थे, कुछ पल को हमारा ध्यान भटकाते जा रहे थे। कुछ देर बाद ही हमारे बीच (ओजस में) और आसपास बादलों का हजूम सा लग गया। ज़ोरों की बारिश होने लगी। इस बीच एक प्रश्न उठा कि बादल तो ओजस के अंदर भी है तो यहां क्यों नहीं बारिश हो रही है? इस तरीक़े से हमारे बीच मंथन होता रहता।
क्रिटिकल थिंकिंग पर चर्चा हुई। सभी ने अपने विचार रखे की क्रिटिकल थिंकिंग क्या है? किस तरीक़े से हम अपनी क्लास के बच्चों में इस चीज़ का विकास करें।
कक्षा में कैसे प्रश्न पूछने चाहिये की बच्चे गहन सोचना सीखे?
जो लोग आये वो कितने लाजवाब थे। मैं अपने जीवन में पहली बार इतने सहज और विनम्र लोगों से मिला, और उनसे बातचीत हुई। उन्हीं मे से एक शख्श था श्याम, जो तमिलनाडु से था, उनकी समझदारी भरी बातें मुझे छू गई। उन्होंने सिखाया कि खुलकर रहो, अपनी बातें छुपाओ नहीं। किसी को पता चल जायेगा तो क्या हो जाएगा। जितना लोगों से अपनी बातें साझा करोगे, उतना ही वो तुमसे करेंगे। और उतना ही विश्वास बढेगा। हो सकता है तुम कुछ बातें न बताना चाहो पर फिर भी बात करो। उसने अपनी रहस्यमयी बातें मुझे बताई जो मै कभी किसी को नही बताना चाहूँगा, इसके बाद बातों का आदान प्रदान शुरू हुआ। मैंने अपनी समस्याएं पूछीं, उन्होंने अपनी तरफ से उस पर सुझाव दिए।
उन्होंने समझाया कि किस तरीक़े से तुम अपनी फ़ेलोशिप को बेहतर बना सकते हो, क्योंकि ये सिर्फ तुम्हारे विकास के लिए ही है।
इन सभी लोगों का तहे दिल से शुक्रिया जो इस शिविर का हिस्सा बनने को आविष्कार आये, स्वयं सीखने और सिखाने।
दिव्यांशु (आविष्कार फैलो)