शिक्षक हूँ! अनुभवों से सीखता हूँ, 

चाहे अपने हों या दूसरों के, 

कुछ अच्छा लगता हैं,

तो मैं रख लेता हूँ।

 

एक शिक्षक का जब नाम लेते हैं तो मन में सबसे पहले जो छवि उभर कर आती है वह एक ज्ञानी व्यक्ति  विशेष, तो कभी छड़ी लिए हाथ में किसी व्यक्ति की बन जाती हैं। मगर किसी व्यक्ति विशेष को केवल उसके विषय ज्ञान के भंडार के आधार पर शिक्षक के पैमाने पर आंकना या समझ लेना शायद थोड़ा ग़लत हो सकता हैं।

एक शिक्षक का विषय ज्ञान उसकी सबसे बड़ी करामति ताक़त तो हैं ही मगर उस ताक़त का किस प्रकार से इस्तेमाल किया जाए जिससे वह अपनी कक्षा के संचालन के दौरान छात्रों को उचित ज्ञान तो दे ही सके उसके साथ वह उस कक्षा के परिवेश को भी नियमित व्यवस्थित करता रहे। जिससे अधिगम का एक उच्चतम स्तर बना रहे।

इस उच्चतम स्तर को बनाने के लिए एक शिक्षक का विद्वान होना तो आवश्यक हैं ही उसके साथ-साथ बदलती हुई इस आधुनिक दुनिया में एक शिक्षक का तीव्रबुद्धि या कुशाग्रबुद्ध होना भी उतना ही आवश्यक हो जाता हैं।

कुशाग्र शिक्षक से अभिप्राय एक चतुर शिक्षक से हैं जो कक्षा के परिवेश को भांप कर अपनी शिक्षण रणनीति बदलता तो रहता ही हैं उसके साथ-साथ छात्रों को उपयुक्त दिशा निर्देश द्वारा उनकी भागीदारी भी नियमित रूप से बढ़ा घटा के अधिगम करवाता रहता हैं।

इस माह में अवसर प्राप्त हुआ ऐसे ही कुछ कुशाग्र शिक्षकों की कक्षा में जाने का। जहाँ अलग-अलग शिक्षकों की कक्षा के संचालन की प्रक्रिया तो देखी ही उसके साथ भिन्न-भिन्न प्रकार की तरक़ीबों से भी परिचित होने का अवसर प्राप्त हुआ।

“शिक्षिका जो छात्रों को दिमाग लगाने पर मजबूर कर देती हैं”।

एक शिक्षिका ऐसी भी मिली जो अपने कक्षा में पढ़ाते समय प्रश्नों की झड़ी को इस तरह लगाती थी कि छात्रों की रुचि कभी खो नहीं पाती थी और छात्र पढ़ते हुए ऊब भी न जाए इस बात का भी अनुमान वो भली भांति लगा लिया करती थी। दरअसल वह प्रश्नों को पूछने के सफर को कुछ आसानी से मुश्क़िलात की तरफ इस तरह ले जाया करती थी की छात्रों को इसका बोध भी नहीं हो पाता था और वह अपनी जिज्ञासा को कभी खो नहीं पाते थे। इससे छात्रों की बौद्धिक स्तर का विकास भी नियमित रूप से बना रहता था।

” ग़लतियों को जशन मनाना सीखो”।

ग़लती! किसी भी काम में ग़लती हो सकती है यह एक ऐसा शब्द और एक ऐसी चीज़ है जो आने वाले क़दम को ठहरा देती हैं और चलते हुए कारवां को रोक देती हैं, मगर कक्षा में यदि इस चीज़ का जशन मनाया जाए तो बहुत कुछ सीखा भी देती हैं। शिक्षक को प्रत्येक छात्र को ग़लती करने पर प्रोत्साहित करते रहना चाहिए और एक दिन ख़ुद वह छात्र अपनी ग़लती को सही कर लेने में सक्षम हो जाएगा।

कक्षा में पढ़ाते समय अक्सर देखने को यह बात मिल ही जाती हैं यदि कोई छात्र ग़लती करता है या उससे पूछे गए सवाल का जवाब ग़लत होता है तो ऐसे में उसका पूरी कक्षा में मज़ाक बनता है और वह शर्मिंदगी से शराबोर होकर फिर कभी उत्तर देने की चेष्टा नहीं कर पाता मगर यदि एक कुशाग्र शिक्षक कक्षा में हो तो वह उसके ग़लत जवाब को भी किसी और संदर्भ में सही बताते हुए उसे अगली बार जवाब देने के लिए प्रोतसाहित कर ही देता हैं।

“जो आलस्य भी चालाकी से करता हो”।

एक अच्छा शिक्षक आलस्य भी चालाकी से करता है, वो तरीक़ा अपनाता है की शिक्षण सामग्री को बच्चों के समूह बनाकर सही तरीक़े से बाँट दे। सही समूह से तात्पर्य प्रत्येक छात्र को इस तरह से समूह में पिरोया जाए जिससे वह मिलकर काम कर सकें और उसके इस्तेमाल का सही निर्देशन देकर अपना काम सरल बना ले। फिर बस उसको घूम-घूम कर देखना होगा कि सब समूह सही-सही और मिलकर काम कर रहे हैं या नहीं अर्थात फैसिलिटेट करने तक ही अपना काम सीमित रखे।

क्या एक समझदार शिक्षक वह है जिसके पास सारा ज्ञान का भंडार है? अपनी इस परिभाषा को मैं आज बदलकर एक नई समझ देता हूँ “जो नए-नए हत्कन्डो से शिक्षण को सहज सरल कर दे वह एक समझदर शिक्षक हैं” जिसके लिए वह अपने अहंकार से परे दूसरे की कक्षा को देखे महसूस करे और उसको अपनी कक्षा में अपनाए वह एक समझदार शिक्षक है।

इस महीने ऐसे ही कुशाग्र शिक्षकों की कक्षा को देख बहुत सीखा जो अच्छा लगा, उसको अपने शिक्षण के थैले में रख लिया और इस्तेमाल कर लिया। ऐसे पैंतरे शायद किसी किताब में मिलें न मिलें या कोई बताए या न बताए, मगर सिर्फ अपने साथियों की कक्षा को देख उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।

इसको करने के लिए कुछ अधिक कठिनाईयों का सामना भी नहीं करना पड़ा बस अपने चश्मे को उतार कर कक्षा को नंगी आंखों से देखने भर का समय लगा। ऐसा कोई भी यदि करे तो फिर वह ऐसे-ऐसे पैंतरे सीख लेगा जो शिक्षण प्रक्रिया को और लचीला बना देने में सहायक हैं।

सभी को कामयाबी अच्छी लगती हैं। हम सब कामयाब होना चाहते हैं और एक शिक्षक की कामयाबी -असल कामयाबी तब बनती हैं जब उसका विद्यार्थी कामयाब होता हैं। एक विद्यार्थी को कामयाब बनाने के लिए इतनी नाकामियों से उसकी परीक्षा लेने के लिए शिक्षक को थोड़ा तो तीव्रबुद्धि बनना पड़ेगा। उसको उसकी ग़लतियों से परिचित भी करवाना पड़ेगा एवं  और ग़लतियाँ वह करे, उससे सीखे इसके लिए भी उसको प्रोत्साहित करते रहना पड़ेगा।

 

शुभम – आविष्कार फेलो।